आंधी / हर प्रसाद परिछा पटनायक

रचनाकार: हर प्रसाद परिछा पटनायक (1953)
जन्मस्थान: बिक्रमपुर, गंजाम
कविता संग्रह: एका एका सन्यासी (1981), अथय सूर्य (1992), आयुष्मान समय (1995), सबु अंधार आजि रातिरे (1996)

सनातन, तुमने आँधी देखी है,
ईश्वर के प्रकोप को ?

ठीक तीन बजे चहल-पहल से भरा सारा शहर
चिंता से थम गया पूरी तरह
दूर-दूर तक, दिग्वलय तक दिखने लगा पीला रंग
पेड़- पौधे हो गए स्थिर फोन के खंभों की तरह
अंधेरें जैसे बुरी तरह
थम गया समय
उसके सामने समय कितना बुद्धू और लाचार

साँय-साँय के कोलाहल में
उड़ गए पक्षी सभी दिशाओं में
रोने लगी गायें बच्चों की तरह उस अंधेरे आतंक में
इधर-उधर भागी, मगर लौटा दिया पेड़ों ने
गुंबद की तरह सभी उठे आकाश को
लौटकर चले गए पूर्व दिशा में
असमाप्त वेदना लहरों की तरह दौड़ी बंग सागर में।

चिड़ियों की चहचहाहट मिली पानी के साथ
तब भी हवा उनके पीछे भागी
रेत, धूल, पेड़-पौधे, सूखे पत्ते
छत, एस्बेस्टॉस, तंबू, लाइट पोस्ट
जगह- जगह रिक्शे और केबिन
उड़ने शुरु हुए हवा के साथ मतवाली चिड़ियों की तरह
उड़ते हुए आए अस्त्र की तरह जिस किसी के रास्ते में ।

सनातन, तुमने कभी पवन देखी है,
पवन के प्रकोप को ?
अग्नि से भी ज्यादा खतरनाक यह पवन
बेहिचक तोड़ती चिड़ियों के घोंसले
बीच-बीच में शासक दल के उद्भ्रांत युवक की तरह
जबरदस्ती करती हैं पेड़-पौधों से
और अपने को बचाने के लिए चली जाती है शासक के घर
कौन पकड़ेगा उसे !
सूर्योदय के समय बीच रास्ते में
खुले आम करती हैं उसका मर्डर ।

सुन सनातन !
पलक झपकते ही कर देती है बादलों को इकट्ठा
और गर्जना के साथ धूं- धूं नाद में
तहस- नहस कर देती है हर किसी को
सजे- सजाए शहर को इज्जत के साथ।
मोड़ना, तोड़ना, गाड़ना
कोई जगह बची नहीं है
मेघों को रुलाकर भिगो दिया सभी को
खराब करके पुराना बना दिया
कहा, ऊपर वाले का आशीर्वाद है।
उसे किससे डर ?

तरुणियों की भौंवें तो देखो !
परीक्षाहाल में
उनके फ्रॉक भीग गए बारिश की बूंदों से
क्षण कोपी पवन धीरे -धीरे हुई शांत
दिखाई देने लगे केवल उसके सफेद पांव
गंधर्व अभियान में यह सारा शहर विध्वस्त।

सनातन,
इस चांचल्य के बाद
मनुष्य बहुत कम सक्रिय दिखा
उस दिन से अंधेरा जल्दी होने लगा
फोन सब कट गए, बिजली गुल
आवागमन धीमा
ठंडा लगने लगा आस- पास का इलाका
बहुत दिनों के बाद इस शहर के आकाश में
चंद्रमा पवन के इस प्रलय में पृथ्वी की तरह
की तरह खिलखिलाकर हंसने लगा,
केवल हंसने।

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