प्रार्थना / गोदावरीश महापात्र

रचनाकार: गोदावरीश महापात्र (1898-1965)
जन्मस्थान: कुमारंग शासन, पुरी
कविता संग्रह: बाणपुर, प्रभात कुसुम(1920), हे मोर कलम(1951), कांटा ओ फूल(1958), पाहाच तलर घास(1958), उठ कंकाल(1961), बंका ओ सीधा(1964), हांडिशालरे विप्लव

हे ओडिशा! मेरी जननी जन्मभूमि जिसे कहते हैं
दास, मिश्र, जेना, लेंका, चौधरी, प्रधान, मोहंती
हाडी, पाण, नन्द, कंध मिलकर
कहते हैं स्वयं को उत्कली
मचाते हैं खलबली
बनाते लाट सभा, नाम धरते असेम्बली

जितने नदी, नाले, गव्हर, बस्ती,मैदान
मंदिर, मशान, दीमक-घर, कुआँ या तालाब
छोटा, बड़ा,लम्बा, ठिगना, पेटू
दाता,नेता,धनी,जेबकटू
क्षुद्र और कंजूस
देशी और विदेशी
ये सब मिलकर बना ओडिशी

हाकिम,डिप्टी,मंत्री, सेक्रेटरी, रानी और किरानी
भूखा, प्यासा, रोगी, किसान, दानी, महारानी
भिखारी,गोदाम व्यापारी
हर कोई बुलाता माँ कहकर
हे ओडिशा
सुनते आ रहे हैं युगों- युगों से तुम्हारे वतन हमेशा .

हे तपन चन्द्र तारा ! हे असंख्य उपग्रह !
तुम तो कर रहे हो विश्व पर असीम अनुग्रह
मांग रहे हो अनुग्रह-लेश
विखंडित ओडिशा देश
बंद करो सब
छिपने और बचने का क्रूर परिहास .

दीमक लगी लकड़ी की तरह यह जाति हुई दुर्बल
राजयक्ष्मा गालों से बहाने लगा रक्त नित अनर्गल
वातग्रस्त कर-पद तल
निर्मिलित नेत्र पदम् दल
कृपा करो
तालिका से पोंछ दो तुम उत्कल

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