अतीत की स्मृति में / विवेक जेना

रचनाकार: विवेक जेना (1937)
जन्मस्थान: बालेश्वर
कविता संग्रह: पवनर घर(1971), देवी स्मृति किंवदंती(1980)

तुम क्यों खड़ी हो आज मेरे यात्रापथ में
अमावस्या के आकाश में देवदारु की छाया की तरह
तुम क्यों डराकर जाती हो मुझे बारबार
चैत्र महीने की हठधर्मी पवन की तरह
डरा देती हो स्पर्श करके यह रूद्ध-द्वार ।

अगर मैं प्रकाश पीछे रखकर
पथ खोजता भयंकर अंधेरे में
अंधेरे को खोजते अंधेरे में अगर रास्ता भूल जाता
तुम क्या साथ दोगी बचे हुए उस अंधेरे में
प्रकाशहीन भयंकर अंधे अतीत में।


यदि बसंत से मुंह फेरकर
थोड़े सा आराम लेना चाहता हूँ 
इस बंद कोठारी में की तलाश में बंद हो जाता यह
क्या तुम कमरे के पिंजरे को हिलाती जाओगी
रोते-रोते कितने बसंत में
कमरे के खुले झरोखों और चौखट में।
 
जाओ, प्रकाश तुम्हें दिया इस बसंत में
फिर भी, पता नहीं कैसे, अंधकार की फैली छाया
जरा-सी चपलता, जरा-सा अभिमान
जरा-सा स्पंदन फिर से इस बंद दरवाजे पर।

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