चंपाफूल / गुरु प्रसाद महांती

रचनाकार: गुरु प्रसाद मोहंती(1924-2004)
जन्मस्थान: नागवाली, कटक
कविता संग्रह: नूतन कविता(1955), समुद्र स्नान(1970), आश्चर्य अभिसार(1988), कविता- समग्र (1995)

चंपा फूल की सुगंध से
समुद्री लहरें भी अपना रास्ता भूल गईं
आईं थी तट को पार करने
मगर सूख गई उफनती नदी के वक्षस्थल पर
पत्थर पानी में परिणत
श्मशान के भूतप्रेतों को छोड़कर
रजवती-कन्या के साथ संसर्ग में
रत योगी ने जादुई संकल्प किया
चंपा-फूल हाथ में लेकर

पत्थर राजपुत्र में बदल गया
सारी हड्डियाँ मुक्ताफूल बन गईं
राजकुमारी का बेणी-फूल नदी की
धारा में बह गया
फिर उस फूल से करोड़ों
मनुष्यों की उत्पत्ति हुई
चंपा-फूल की सुवास  !
एक भयानक इंद्रजाल
रक्त में आग
सीने और साँसों में आग
शरीर में चमकती चपला की तरह

चपला की चमक दावाग्नि की तरह
सभी का तितर- बितर हो जाना
जमीन पर लौटते- लौटते जलने लगना
मांस में से फूलों का खिलना
सोते हुए भी याद आने से मन रोमांचित हो उठता हैं

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