तुम / निर्मला देवी

रचनाकार: निर्मला देवी (1907-1987)
जन्मस्थान: बालीकूदा, कटक
कविता संग्रह: दिनान्ते (1953), सीमांते(1962), वर्णराग(1986)

तुम तो हो रंगहीन
मगर रंग धारण करते हो कैसे ?
तुम तो हो गंधहीन
मगर असंख्य सुगंधों में सुवासित होते हो कैसे  ?
तुम तो हो स्पर्शहीन
मगर हर प्राणी में सिहरन उठाते हो कैसे  ?
तुम तो हो रसहीन
मगर पूरी सृष्टि को रसमय बनाते हो कैसे ?
तुम तो हो रूपहीन
मगर अनंत रूप दिखाते हो कैसे ?
तुम तो हो शब्दहीन
मगर विश्व को शब्दमय बनाते हो कैसे ?
दिखते हो तुम एकदम विचित्र
सुनो, कैसे बनाऊँ मैं तुम्हारे चित्र

Comments

Popular posts from this blog

बड़ा आदमी / अनिल दाश

मन आकाश का चंद्रमा / मनोरंजन महापात्र

भेंट / सुचेता मिश्र