पटरानी / मोनालिसा जेना

रचनाकार: मोनालिसा जेना (1964)
जन्मस्थान: मुकुंद प्रसाद, खोर्द्धा
कविता संग्रह: निसर्ग ध्वनि (2004), ए सबु ध्रुव मुहूर्त (2005),अस्तराग (असमिया से ओड़िया में अनूदित)

इस ‘मानसी’ शब्द से
जिसने मुझे पहली बार बुलाया था ?
जिसने दिया प्रेम का प्रहार
बिना अपराध के ?
एक बंद कोठरी के नीले मायालोक में
मैं धीरे- धीरे हल्की हो गई थी
जिस प्रकार उड़ती प्रजापति की तरह
जिस प्रकार झरती हुए पंखुडी की तरह
और उसके बाद ?
पश्चिम घाट के उस शिखर पर
नाहरगढ़ की उजड़ी राजगिरि
और लहू से भरी खाड़ी की तरह
दीर्घ श्वास, पांच शताब्दी का...।
उस समय मैं थी शायद
एक पहाड़ी राजा की पटरानी
राजा भ्रमण से लाया था मुझे
नाच नहीं, गीत नहीं, बाजा नहीं, वेदी नहीं
प्रेमी की पहली पसंद, पटरानी
हंसिनी को समर्पित कर रहा था शतस्वस्ति,
लक्ष्यहीन तीर राजकुमार का.....।
तब भी
उस स्थापित राममहल के भीतर में
प्रणय प्रार्थिनी, नौ रानी हम
कोई गूंथती मोती माला
कोई सिलती है मसलीन बूट
और कोई सजाती है
व्यस्क राजा के चौसठ कला विन्यास में...।
मैं प्रेम में जैसे पागल
अतिक्रांत प्रतीक्षा में पांच राते
ध्यान टूटा नहीं
सड़ गया राजा का राजभोज
मुझे भी खबर नहीं....
तत्क्षणात् छोटी रानी
छल करके कह दिया
जान बूझकर मैने ध्यान नहीं दिया
राजा ने दिया
प्रेमिका को प्रेम के लिए प्राणदंड
जहाँ मैने झरोखा खोला
और देखा आंसू का गहरा खेत
वहाँ मेरा शरीर हो गया
लाख- सोने पखुड़ियों का किंवदती- फूल...।

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