घर, घर नहीं रहा / उदय नाथ बेहेरा
रचनाकार: उदय नाथ बेहेरा (1954)
जन्मस्थान: कंटिओ,ढेंकानाल
कविता संग्रह: ओड़िया-भाषा की स्थानीय पत्र–पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित
ठीक था, ऊँट तंबू के बाहर था
अंदर आते ही उँगली पकड़कर पनहुचा पकड़ लिया
तंबू तो गया, सब कुछ बरबाद भी हो गया
अंदर के लोगों के सर पर, आसमान छत बन गया ।
ठीक था, घर खाली था
सोचा था समान लाना सुखदायक होगा,
पर यह तो सुखदायक बनेने लगा,
अदमी की जगह डिंबों ने ले लिया
घर अब घर नहीं, कचरों का दबा बन गया
सामानों की दया पर अदीमी निर्भर हो गया
पहले अदीमी अंधार था, अब बेघर हो गया
घर से बाहर हो गया ।
ठीक था पहले सामान कम था
अदीमी था, आदमीयत भी थी
पर सामानों के राज में आदमी गरीब हो गया
उसकी आदमीयत, प्यार –मुहबबता खोखली हो गई
डिबम्बो, कार्टून की तरह खाली हो गई
अब सब शब बन गये,
चलते फिरते शरीर से मानों प्राण निकल गये ।
तंबू तो गया, सब कुछ बरबाद भी हो गया
अंदर के लोगों के सर पर, आसमान छत बन गया ।
ठीक था, घर खाली था
सोचा था समान लाना सुखदायक होगा,
पर यह तो सुखदायक बनेने लगा,
अदमी की जगह डिंबों ने ले लिया
घर अब घर नहीं, कचरों का दबा बन गया
सामानों की दया पर अदीमी निर्भर हो गया
पहले अदीमी अंधार था, अब बेघर हो गया
घर से बाहर हो गया ।
ठीक था पहले सामान कम था
अदीमी था, आदमीयत भी थी
पर सामानों के राज में आदमी गरीब हो गया
उसकी आदमीयत, प्यार –मुहबबता खोखली हो गई
डिबम्बो, कार्टून की तरह खाली हो गई
अब सब शब बन गये,
चलते फिरते शरीर से मानों प्राण निकल गये ।
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