मन आकाश का चंद्रमा / मनोरंजन महापात्र

रचनाकार: मनोरंजन महापात्र (1969)
जन्मस्थान: भुवनेश्वर
कविता संग्रह: ओड़िया स्थानीय पत्र–पत्रिकाओं जैसे भूलग्न,सूत्रधार,नीलकईं का सम्पादन ।

मेरे मन के आकाश में
अगर तूँ चंद्रमा बन जाए
तो मैं इस चन्द्रमा से क्यों
प्रकाश मागूँगा ?

अगर तुम रातरानी के फूल
बनकर हर दिन
मेरे झरोखे के पास खिलने लगो
क्यों मैं फाल्गुन को चिट्ठी
लिखूँगा, कहो ?

अगर तुम गंगा बनकर मेरे
रास्ते में बहो, तो
मैं क्यों काशी, वाराणसी जाऊँगा।
अगर तुम अपनी इच्छा से
अनुसूया बन जाओ
क्यों 'लक्ष-हीरा" की कोठरी में
मैं रात को बिताऊँगा
मेरे हृदय की सरिता ऐसे भर जाती है
तुम्हारी इच्छा के काशतंडी फूल में
विनिद्र होकर संभाल लूँगा
तंद्रा से भरी रातें
कामना के सोमरस के साथ
कृष्ण तिथियों में।

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